खतरे में बीना विधायक निर्मला सप्रे की विधायकी

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जबलपुर: मध्य प्रदेश की विधानसभा सीट बीना से विधायक निर्मला सप्रे ने कांग्रेस की सदस्यता त्याग कर भाजपा का दामन थाम लिया था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उपस्थिति में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण भी कर ली थी। सागर जिले की बीना सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतने वाली निर्मला सप्रे की सदस्यता मामले में कोर्ट में सख्ती अपनाई है। कोर्ट ने स्पीकर, सरकार और निर्मला सप्रे को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। दरअसल, शुक्रवार को नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की याचिका पर सुनवाई की थी। जिसमें हाईकोर्ट ने विधानसभा स्पीकर नरेंद्र सिंह तोमर से पूछा कि इस मामले में क्या कार्रवाई की गई अब मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी नेिता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने मध्यप्रदेश विधानसभा के सभापति के समक्ष निर्मला सप्रे की विधायकी को निरस्त करने के लिए जो याचिका प्रस्तुत की थी, उसका निराकरण सभापति नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा अब तक नहीं किया गया है। सभापति द्वारा निर्णय नहीं लिए जाने के कारण उमंग सिंघार ने हाईकोर्ट की शरण लेते हुए याचिका दायर की गई है और यह मांग की है कि निर्मला सप्रे की विधानसभा सदस्यता रद्द की जाए। याचिका की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी ।उक्त याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा ने महाधिवक्ता प्रशांत सिंह से यह प्रश्न किया कि आखिर सभापति ने 16 महीने बीत जाने के पश्चात भी नेता प्रतिपक्ष द्वारा निर्मला सप्रे की विधायकी समाप्त किए जाने वाली याचिका पर निर्णय क्यों नहीं लिया है जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने ‘पाडी कौशिक रेड्डी बनाम तेलंगाना राज्य’ एवं ‘केशम बनाम मणिपुर राज्य’ के न्याय दृष्टांत में यह निश्चित कर दिया है कि दल-बदल याचिका का निराकरण 3 माह के भीतर सभापति द्वारा किया जाना चाहिए। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल एवं जयेश गुरनानी द्वारा यह तर्क रखा गया कि सभापति उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित किए गए विधि के सिद्धांतों के विपरीत कार्य कर रहे हैं एवं निर्मला सप्रे के विरुद्ध प्रस्तुत की गई दल-बदल याचिका का निराकरण नहीं कर रहे हैं तथा भारतीय संविधान की अनुसूची 10 के पैरा 2 (1) (क) व अनुच्छेद 191 (2) के अनुसार यदि कोई विधायक दल बदल करता है तो उसकी विधानसभा से सदस्यता निरस्त की जानी चाहिए।
कोर्ट ने 18 नवंबर तक मांगा जवाब:
मामले की सुनवाई के दौरान विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने तर्क दिया कि इस मामले की सुनवाई डिवीजन बेंच में नहीं हो सकती। इस तर्क को कोर्ट ने खारिज करते हुए पूछा है कि निर्मला को दलबदल मामले में अयोग्य घोषित करने वाली याचिका पर 90 दिन में निर्णय करना चाहिए था, लेकिन 16 महीनों में निर्णय क्यों नहीं किया कोर्ट ने 18 नवंबर तक विधानसभा अध्यक्ष, राज्य सरकार और निर्मला सप्रे से जवाब मांगा है।