कांतिलाल मांडोत: भारतीय संस्कृति में अनेक पर्व त्यौहार आते है और अपने साथ एक खास इतिहास, विशेष संदेश लेकर सबको जागृत कर जाते है। शरद पूर्णिमा एक महान पर्व है। शरद पूर्णिमा का पवित्र पर्व है। ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक पक्ष की पंचमी, दशमी, पूर्णिमा ये पूर्णा तिथि मानी गई है। कोई भी शुभ कार्य इन तिथियों में प्रारंभ किया जाता है तो वह सानन्द पूर्ण होता है। यह ज्योतिष ग्रंथो का विश्वास है। शरद पूर्णिमा पूर्ण तिथि है। सनातन धर्म मे शरद पूर्णिमा का विशिष्ट महत्व है। शरद पूर्णिमा भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ माना गया है। शरद पूर्णिमा का संदेश है कि हम स्वयं पूजा अर्चना कर अन्य भक्तो को संदेश देकर पुण्य उपार्जन करने चाहिए। हमारे पूर्वजों का उपकार मानना चाहिए कि लुप्त होते पर्वो को तन. मन और धन अर्पित कर जीवित रखा। पूर्णिमा की चांदनी रात का प्रकाश अन्य तिथियों की तुलना में अधिक तेज और शक्तिशाली होता है। चन्द्रमा अपनी पूरी चमक के साथ जगमगाता है और उसकी किरणों से अमृत बरसता है। हर शुक्ल पक्ष की ये तिथियां लोगो का कार्य सफल करने के लिए वरदान साबित होती है। लोग तिथि शुभ तिथियों पर विशेषतौर पर कार्य करते है। जिससे कार्य जल्दी सफल हो जाये। यह मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसलिए शरद पूर्णिमा के दिन रात में चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाती है। इस जागरी रात शरद पूर्णिमा को चंद्रमा सोलह कलाओ से परिपूर्ण होता है। शरण पूर्णिमा के दिन लोग श्रद्धाभिमुख कार्य को किसी ज्योतिषाचार्य की सलाह के बिना ही कार्य को शुरू कर देते है। सारे दिन में किसी भी समय शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है। सांस्कृतिक समृद्धि, भक्ति और कल्याण का संयोजन शरद पूर्णिमा को एक सम्रग पर्व बनाता है। भक्ति, पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लेने की होड़ लगी रहती है। नए पोशाक में सज्ज धज कर पूजा करने के इस रिवाज में युवाओ का क्रेज बढ़ता दिखाई दे रहा है। आध्यात्मिक गहराई और स्वास्थ्य सम्बन्धी महत्व के कारण शरद पूर्णिमा एक विशेष महत्व रखती है। देश विदेश में इस तिथि का पूर्णरूप से भक्तिमय वातावरण में पूजा अर्चना का चलन बढ़ गया है। शरद पूर्णिमा की आराधना अनन्त पुण्यों का उत्कृष्ट परिणाम है। मानसून के अंत और शरद ऋतु के प्रारम्भ का प्रतीक पर्व होने के कारण किसान इसे फसल पूर्णिमा के नाम से याद करते है। लक्ष्मी भगवान कृष्ण और चन्द्रमा की आरोग्यकारी शक्ति से जुड़ी होने की वजह से शरद पूर्णिमा का भारत मे विशेष महत्व है। शिव की पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष चीजों के द्वारा शिवलिंग का अभिषेक करने से बिगड़े काम पूरे होते हैं। साथ ही महादेव को कृपा प्राप्त होती है। ऐसे में चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन किन चीजों से शिवलिंग का अभिषेक करना शुभ माना जाता है। जीवन में सुख शांति के लिए शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग के उपर बेलपत्र और जलाभिषेक करके भक्तजन भगवान शिव का आशीर्वाद लेते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान करने के बाद जल से शिवलिंग का अभिषेक करें। इसके बाद केसर अर्पित करें। महादेव के मंत्रों का जप करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस उपाय को करने से व्यक्ति के मान- सम्मान में वृद्धि होती है। साथ ही शिव की कृपा से जीवन के सभी दुख दूर होते हैं। पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती है और भक्तिभाव से पूजा अर्चना करने वालो को माता सुख समृद्धि का आशीर्वाद देती है, क्योंकि इस विशेष दिन पर लक्ष्मी, प्रेम और चंद्रमा तीनो की पूर्णता प्रकट होती है। लक्ष्मी की आराधना और रात्रि जागरण से मनोवांछित फल प्रास होता है। शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में भक्ति भाव से भक्तजनों की भीड़ उमड़ती है। दिप दान का बहुत महत्व है। सनातन संस्कृति की मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की किरणें मानव शरीर पर पड़ना अधिक शुभ माना गया है। इसकी विशेषता यह है कि इसकी पूजा शीघ्र फलदायक है। व्रत रहकर भक्तजन महादेव के मंदिर में जलाभिषेक और बेलपत्र अर्पण कर भगवान से परिवार में सुख सम्रद्धि की कामना करते है। यह अनेक जन्मों की उत्कृष्ट तप की समुज्ववल साधना का परिणाम है कि हमे भगवान आराधना करने का मौका मिला है। शरद पूर्णिमा के दिन मन मे पाप के प्रति घृणा, ग्लानि या पश्चाताप होने से सभी पाप धूल जाते है। इसलिए इस दिन पाप की शिवलिंग के समक्ष घृणा और आलोचना करनी चाहिए। क्योंकि प्रायश्चित लेने से वे पाप नष्ट हो जाते है। जीवन मे पाप, चोरी, हत्या या छोटे से छोटा अपराध भी मनुष्य के अंतः करण को कचोटता रहता है, उसे चैन नहीं होने देता। इसलिए कोई भी पाप इस पवित्र तिथि पर भगवान के समश्न खोल देना ही अपने पापों को कम करने की सरल तरकीब है।