इच्छाधारी यूनिवर्सिटी बन गया महर्षि महेश योगी वैदिक विवि

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भोपाल से खास खबर (मध्य स्वर्णिम):
कभी-कभी नाम बड़े और दर्शन कैसे छोटे होते हैं यदि इसका उदाहरण देखना हो तो महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को भी देखा जा सकता है। नैतिकता की ऊंची अट्टालिकाओं पर सवार होकर सदाचरण का बखान करने वाले कैसे विद्यार्थियों को ही अपना शिकार बना रहे हैं इसका जीवंत उदाहरण यह इच्छाधारी विश्वविद्यालय बन चुका है। दरअसल, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय जिसकी स्थापना 1995 में हुई, 1996 की प्रबंधन बोर्ड ने कुछ निर्णय लिये। संशोधन अधिनियम 1999 के प्रावधान के मुताबिक ‘महर्षि वेद वैदिक विश्वविद्यालय पौठम’ का गठन नहीं किया गया। जिसके अनुरूप राज्य शासन द्वारा वर्ष 1999 में किए गए संशोधन अधिनियम का पालन ही नहीं हुआ। इसके अलावा भी विश्व विद्यालय अनुदान आयोग के विनिमय 2003 का पालन नहीं करने के कारण भी विश्वविद्यालय की की उपाधियों की वैधता पर प्रश्न चिन्ह है। मिली जानकारी के अनुसार 1998 से नवंबर 2014 तक यही विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय हो गया (ये हम नहीं कह रहे, यह माननीय उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश ग्वालियर डिवीजन बेंच का निर्णय है) उसके बाद दिसंबर 2014 से आज दिनांक तक मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग लिखते हैं कि उक्त विश्वविद्यालय हमारे अधीन नहीं है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार इस विषय पर खामोश है। नेशनल इंस्टीटयूशनल किंग फ्रेमवर्क में कोई रैंक ही नहीं है, शोध, अनुसंधान की स्पष्ट जानकारी भी नहीं है। है। फिर भी प्रीमियम विश्वविद्यालय का दर्जा माननीय बहाद सुप्रीम कोर्ट ने दिया है ऐसा दावा विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा किया जाता है। प्रबंधन पर आरोप है कि एक भी नियमित नियुक्ति नहीं है, शासन ने कब विज्ञापन निकाला, कौन सी छानबीन समिति बनी, चयन समिति कब बनी नियुक्तिकर्ता अधिकारी का नाम पदनाम का पता नहीं, नियुक्त किये गये सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के पास नियुक्ति पत्र ही नहीं है। कहा तो यह भी जा रहा कि विश्वविद्यालय में संबंधित रिकार्ड ही नहीं है ऐसा 2013 में तत्कालीन कुलसचिव ने शासन को लिखित रूप में दिया है। दरअसल, 2012 में सागर निवासी शरद कुमार भरद्वाज ने महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय से कम्प्यूटर साइंस में एमएससी की उपाधि ली थी। 2024 में ग्वालियर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक निर्णय देते हुए कहा था कि महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय फ्रेंचाइजी के माध्यम से ऑफ कैम्पस कोर्स चलाने का हकदार नहीं था। इसी वजह से फ्रेंचाइजी द्वारा संचालित ऑफ कैम्पस कोर्स के आधार पर जारी किसी भी प्रमाण-पत्र को वैध नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने इसी आधार पर शासकीय नौकरी प्राप्त तीन लोगों की सेवाएं समाप्त करने को भी वैध ठहराया था। इस आधार पर शरद भारद्वाज ने योगी विविद्यालय अनुदान आयोग से आरटीआई में जानकारी मांगी। आयोग ने वैदिक विश्वविद्यालय देते हुए बताया कि यूजीसी को अनुमति बिना विश्वविद्यालय अपने मुख्य परिसर के अलावा कहीं और सेंटर चलाने की अनुमति नहीं है, वह किसी को फ्रेंचाइजी भी नहीं दे सकता। विश्वविद्यालय का मुख्यालय कटनी जिले के करौंदी में है। आयोग के जवाब से शरद की चिंता बढ़ी उन्होंने विश्वविद्यालय से इसका खुलासा करने को कहा। विश्वविद्यालय ने पहले तो स्वयं को आरटीआई के दायरे से बाहर होने की बात कह कर जानकारी देना स्वीकार कर दिया। फिर अपीलीय सुनवाई कर फैसले को दोहरा दिया। इसको लेकर अब शरद भारद्वाज में राज्यपाल समेत अन्य जिम्मेदारों को शिकायत पर विश्वविद्यालय की वस्तु की स्थिति का खुलासा करने का आग्रह किया है। विश्वविद्यालय की ओर से विधानसभा में दी गई जानकारी में बताया गया कि उनके संस्थान में करीब 10 हजार नियमित और 60 हजार 399 स्वाध्याय विद्यार्थी अध्ययनरत थे। विश्वविद्यालय, शासन के जिन अधिनियमों का हवाला देकर पाठ्यक्रम संचालित कर रहा है, उसमें सिर्फ महर्षि वेद वैदिक विश्वविद्यालय पीठं के अंतर्गत वेद से जुड़े विषयों की शिक्षा दी जा सकती है। लेकिन ज्यादातर संख्या अंग्रेजी, समाजशास्त्र व अन्य विषयों में डिग्री लेने वालों की है। महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय सरकारी या राज्य सरकार के अधीन निजी विश्वविद्यालय यह सच आज तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी भी नहीं जान सका है। विश्वविद्यालय के स्टेटस को जानने में साल 2014 में राज्य सरकार को एक पत्र लिखा इसका जवाब मिलने की जगह आयुक्त को ही न्यायालय कटघरे में खड़ा कर दिया गया। अब संस्थान में पढ़ने वाले हजारों छात्रों का भविष्य अन्धकार में हैं और सिस्टम मौन ।

इनका कहना है:
यदि विश्वविद्यालय वैध है तो वैधता संबंधी दस्तावेज सार्वजनिक करने में क्या क्यों आपत्ति है? सारे दस्तावेज सार्वजनिक कर हजारों छात्रों के मन में उपज रहे शंका को दूर करने की कोशिश होनी चाहिए। छिपाने से भ्रम और गहरा हो रहा है। जिम्मेदारों से अपील है कृपया विषय वस्तु स्पष्ट कराएं।
-शरद कुमार भारद्वाज पूर्व छात्र, राहतगढ़ (सागर)