जबलपुर (मध्य स्वर्णिम): मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ में एमपीपीएससी को झटका लगा है। एमपीपीएससी मुख्य परीक्षा-2025 का शेड्यूल मंजूर कराने के लिए हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट की युगलपीठ ने आयोग की अर्जी पर बिना दूसरे पक्ष को सुने मंजूरी देने से इनकार कर दिया। अब इस मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी। दरअसल, मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की तरफ से हाई कोर्ट में मुख्य परीक्षा का शेड्यूल पेश किया गया था। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच से मुख्य परीक्षा 2025 के लिए मंजूरी देने का आग्रह किया गया था। लेकिन समय कम रहने के चलते कोर्ट ने अगली तारीख दे दी। मामले के अनुसार आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों में सुनीत यादव निवासी भोपाल, पंकज जाटव (नरसिंहपुर) और रोहित कावड़े (बैतूल) की तरफ से याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया था कि एमपीपीएससी ने कुल 158 पदों की भर्ती हेतु प्रारंभिक परीक्षा का रिजल्ट 5 मार्च को घोषित किया। लेकिन रिजल्ट में केटेगरी वाइज कटऑफ अंक जारी नहीं किए गए। वहीं, पहले की परीक्षाओं में वर्गवार कटऑफ जारी किए जाते थे।
ओबीसी आरक्षण पर अब रोजाना सुनवाई:
मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण को टॉप ऑफ द बोर्ड श्रेणी में शामिल कर 24 सितंबर 2025 से दैनिक सुनवाई करने का फैसला किया है। अदालत ने संकेत दिया है कि अंतिम निर्णय होने तक यह सुनवाई लगातार जारी रहेगी। इस मामले में सरकार, ओबीसी महासभा और याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों के वकील एकजुट होकर कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखेंगे। मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, जिसे 2019 में अध्यादेश के माध्यम से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया था। हालांकि, मामला न्यायालय में लंबित होने से 13 प्रतिशत आरक्षण प्रभावी नहीं हो पाया है। यदि शीघ्र निर्णय आता है, तो इससे वे विद्यार्थी भी लाभान्वित होंगे जो इस अतिरिक्त कोटे में आते हैं और आयु सीमा पार कर चुके हैं।इससे पहले विधानसभा में हुई सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने ओबीसी आरक्षण को 27 प्रतिशत किए जाने पर सहमति जताई थी। बैठक में यह संकल्प भी पारित हुआ कि अन्य पिछड़े वर्ग को उनका उचित हक दिलाने के लिए सभी दल एकजुट रहेंगे। बता दें, ओबीसी आरक्षण वृद्धि का प्रस्ताव पहली बार कमलनाथ सरकार ने पारित किया था। इसके बाद मामला अदालत में चला गया। अब सुप्रीम कोर्ट के दैनिक सुनवाई के निर्णय से उम्मीद है कि वर्षों से लंबित यह विवाद जल्द सुलझेगा और राज्य में आरक्षण व्यवस्था स्पष्ट हो जाएगी।