मोदी ने इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी से की बातचीत

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नई दिल्ली (मध्य स्वर्णिम): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के साथ भारत और यूरोपीय संघ के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा की और इसके समर्थन के लिए उनका आभार व्यक्त किया। फोन पर बातचीत में, मोदी ने मेलोनी के साथ यूक्रेन में संघर्ष को समाप्त करने के उपायों के साथ-साथ भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के कार्यान्वयन पर भी चर्चा की। पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा कि प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी के साथ अच्छी बातचीत हुई। हमने भारत-इटली रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने की अपनी साझा प्रतिबद्धता दोहराई और यूक्रेन संघर्ष को जल्द समाप्त करने में साझा रुचि जताई है। भारत-यूरोपीय संघ के बीच आपसी हितों पर आधारित व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने और आईएमईईईसी पहल के तहत कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित करने में इटली के सक्रिय समर्थन के लिए प्रधानमंत्री मेलोनी का धन्यवाद किया। भारत और यूरोपीय संघ इस साल के अंत तक प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को अंतिम रूप देने पर विचार कर रहे हैं। दोनों पक्ष इस सप्ताह नई दिल्ली में 13वें दौर की वार्ता कर रहे हैं। भारत और यूरोपीय संघ ने आठ वर्षों से अधिक के अंतराल के बाद जून 2022 में मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए वार्ता फिर से शुरू की।

भारत अमेरिकी डॉलर का विकल्प नहीं खोज रहा:
भारत अमेरिकी डॉलर के विकल्प में कोई नई करेंसी बनाने की योजना में शामिल नहीं है। मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने यह बात साफ कर दी है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होने की संभावना कम है। फायदे की उम्मीद ज्यादा है। एआईएमए के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी 7.8 प्रतिशत बढ़ी है। यह बढ़ोतरी महंगाई कम होने से नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों के बढऩे से हुई है। जुलाई और अगस्त के शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि दूसरी तिमाही में भी यही रफ्तार बनी रहेगी। कोरोना महामारी के बाद से जी20 देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसकी अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत बनी हुई है। रूस और चीन अमेरिकी डॉलर का विकल्प तलाशने में जुटे हैं। वे ग्लोबल वित्तीय प्रणाली में अमेरिका के प्रभुत्व और प्रतिबंधों के खतरे से बचना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर का इस्तेमाल होने से अमेरिका को अन्य देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की ताकत मिल जाती है। रूस और चीन दोनों को इसका एहसास हुआ है। दोनों ही देश मिलकर अपनी करेंसी (रूबल और युआन) और अन्य गैर- डॉलर मुद्राओं का इस्तेमाल बढ़ाकर ऐसी वित्तीय प्रणाली बनाना चाहते हैं जो अमेरिकी कंट्रोल में न हो।