भोपाल (मध्य स्वर्णिम): राजधानी भोपाल का जेपी अस्पताल एक बार फिर चर्चा में है। लगभग 26 करोड़ रुपये की लागत से बना नया भवन तैयार तो हो गया, लेकिन इसे मरीजों के लिए खोला नहीं जा सका है। वजह हैंडओवर की मंजूरी को लेकर विभागीय टकराव । सूत्रों के मुताबिक, भवन निर्माण पूरा होने के बाद एजेंसी ने सारा रिकॉर्ड और रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने भवन में तकनीकी कमियां बताते हुए स्वीकृति पर रोक लगा दी। इस बीच इलाज के उपकरण और सामान की आंशिक शिफ्टिंग शुरू हो गई है, पर आधिकारिक रूप से भवन का अधिग्रहण नहीं हुआ। कुछ दिन पहले उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला अस्पताल पहुंचे थे। उन्होंने व्यवस्था को नए भवन में स्थानांतरित करने को कहा था। लेकिन प्रशासनिक मंजूरी न मिलने से आदेश अब तक अमल में नहीं आ पाए हैं। इसके बाद भोपाल का कलेक्टर काउंसलिंग विक्रम सिंह ने भी अस्पताल के नए भवन का निरीक्षण कर तत्काल शुरू करने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे, लेकिन इसे अभी तक शुरू नहीं किया गया है। बताया जा रहा है कि पूर्व अधीक्षक डॉ. राकेश श्रीवास्तव के समय हैंडओवर कमेटी बनी थी, जबकि वर्तमान अधीक्षक डॉ. संजय जैन ने पदभार संभालने के बाद पूरे दस्तावेजों की पुनः जांच के आदेश दिए हैं।
भवन को जोडऩे वाला कनेक्टिंग कॉरिडोर भी अधूरा:
जानकारी के लिए बता दें कि जेपी अस्पताल नए भवन पहले जी प्लस थ्री मंजिल का प्रस्तावित था। बाद में हृदय रोगियों की संख्या बढऩे पर कैथलैब यूनिट जोडऩे की योजना बनी। इसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर स्थापित किया जाना था, लेकिन जिस निजी संस्था को यह काम सौंपा गया था, उसने बीच में ही अनुबंध से हाथ खींच लिए। इससे न केवल कैथलैब रुकी बल्कि भवन को जोडऩे वाला कनेक्टिंग कॉरिडोर भी अधूरा रह गया। निर्माण एजेंसी का कहना है कि उन्हें जितना बजट और कार्यादेश दिया गया, उसी अनुरूप निर्माण पूरा किया गया। लेकिन अस्पताल प्रशासन का तर्क है कि मूल योजना के अनुसार कई काम अधूरे छोड़े गए हैं। नई इमारत में सेवाएं शुरू न होने से मरीजों को पुरानी बिल्डिंग में ही उपचार के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ता है।




