संदर्भ विश्लेषण (मध्य स्वर्णिम): सुनील दत्त तिवारी (मो. 9713289999)
जुनैद हजर्जी लारी का लिखा हुआ आज बरबस ही याद आ गया। लिखी हुई एक सूचना पढ़ी मुख्यमंत्री के पुत्र की शादी सामूहिक सम्मेलन में होगी। भौतिकतावाद के इस युग में जब ‘जो दिखता है वो बिकता है’ की लोककथाएं कही और सुनी जाती हों ऐसे में किसी राज्य वो भी मध्यप्रदेश जैसे राज्य का सीएम, ‘कॉमन मैन’ होने का न केवल बोध कराता हो अपितु अपने कार्यों से दिखाई भी देता हो तो जुनैद की लिखी लाइन अपने आप में तो पूर्ण हो ही जाती हैं। इसी प्रदेश ने कुछ महीनों पहले ही दो राजनेताओं की राजसी विवाह समारोह को भी देखा है। जहां सोशल मीडिया पर हर रस्म को रिकॉर्ड कर फेंक देने की बाढ़ आ गई थी।गोया कि हर इवेंट का प्लान पहले से तैयार था और प्रीतिभोज (भंडारा) शहर दर शहर आयोजित किए गए थे। उस प्रदेश में निवर्तमान मुख्यमंत्री के चिरंजीव का विवाह सामूहिक सम्मेलन में हो रहा है. सुनकर अटपटा लगेगा ही। लेकिन, बतौर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी सादगी की छाप छोड़ी है। इससे पहले भी अपने बड़े चिरंजीव का विवाह उन्होंने बिना किसी दिखावे के उंगली में गिने जाने लायक मेहमानों के साथ पुष्कर में किया था। अभी भी मुख्यमंत्री निवास में डॉ. यादव के अलावा उनके परिवार का कोई नहीं रहता। अन्यथा तो हमने वो दौर भी देखा है जब परिवार छोड़िए, पूरा का पूरा कुनबा ही सीएम हाउस में अपना आधिपत्य जमाए रखता था। जिस डाक्टर अभिमन्यु का विवाह सामूहिक सम्मेलन में होने की बात सामने आई हैं, वो स्वयं भोपाल में ही हॉस्टल कैंपस में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। सोचिए, जिस पुत्र का पिता प्रदेश का मुख्यमंत्री हो, जिसके पास श्यामला हिल्स में प्रदेश का सबसे ताकतवर बंगला हो वो किराए के कमरे में रह रहा हो, ये त्याग और संस्कार की ही बात है। वैसे भी डॉ. मोहन यादव ‘लो प्रोफाइल हाई विजन’ वाले नेता हैं जो बीजेपी की दूसरी पीढ़ी के सबसे सफल मुख्यमंत्री साबित हो रहे हैं। अपनी सादगी के साथ दूरदर्शी निर्णय और प्रदेश में संस्कृति और संस्कारों की क्रांतिकारी पहल करने वाले डॉ. यादव सच्चे अर्थों में संघ के वह स्वयं सेवक हैं जो मनसा वाचा कर्मणा ठीक वैसे ही हैं जैसे दिखाई देते हैं। ताम झाम से कोसों दूर बस लक्ष्य पर निगाह और अनवरत परिणाम की खोज में निकल पड़ना तिभी तो उनके चिरंजीव का सामूहिक सम्मेलन में विवाह करना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं माननी चाहिए। इस दौर में तो राजनेता अपने संबंधियों की मृत्यु पर भी 13 दिवसीय समारोह मना लेते हैं, नगर तो छोड़िए प्रदेश भर का भंडारा • अपनी राजनैतिक रसूख की गिनती कराने में करा लेते हैं। ऐसे में बदलाव की यह खबर सुखद अनुभूति देती हैं। कम से कम समाज में बदलाव की बयार खुद के घर से बहे तो यही आचरण ही श्रेयस्कर है। माना जाना चाहिए कि डॉ. मोहन यादव के इस संदेश से बाकी के राजनेता भी सबक लेंगे। सबक भले न लें लेकिन अपने व्यवहार में फिजूलखर्ची को रोकना शामिल कर एक नए विधान का आव्हान तो कर ही सकते हैं। क्योंकि,




