उमा कहउँ मैं अनुभव अपना…

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प्रसंगवश (मध्य स्वर्णिम): सुनील दत्त तिवारी (मो. 9713289999)

अरण्यकाण्ड कांड में एक चौपाई है जिसमे भगवान शिव माता पार्वती से कहते है कि उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत् सब सपना॥ जिसका भावार्थ है-

हे उमा! मैं तुम्हें अपना अनुभव कहता हूँ- हरि का भजन ही सत्य है, यह सारा जगत् तो स्वप्न (की भाँति झूठा) है। जब भगवान शिव माता सती को यह रहस्य बता रहे थे तब माता पार्वती भी बहुत ऊहापोह में थीं।शायद राजनीति की वैसी ही अवस्था से पूर्व मुख्यमंत्री उमा श्री भारती भी गुजर रही हैं। राम मंदिर आंदोलन और उससे भी पहले से उमा राजनीति के प्रखर आवाजों में से एक थीं।2003 में जब मध्यप्रदेश में दिग्विजयी रथ को रोकने का अश्वमेघ हुआ तो कमान साध्वी उमा श्री भारती के हाथों में ही सौंपी गई।तब उमा भारती ने पूरे प्रदेश में घूम – घूम कर दिग्विजय सिंह की छवि मिस्टर बंटाधार की बना दी और एमपी में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड जनादेश मिला।लेकिन,मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उमा लंबे समय तक बैठ नहीं पाईं। अपने स्वभाव के अनुकूल उन्होंने वैसा ही कर दिया जो तत्कालीन बीजेपी नेतृत्व चाहता था।वैसे भी अपने मुख्यमंत्रित्व के कार्यकाल के दौरान उमा पर एक वर्ग विशेष को प्रश्रय देने का आरोप लगा तो राजनैतिक अपरिपक्वता का फायदा भी कुछ नजदीक के नेताओं ने उठाया । हुबली कांड के बाद सीएम के पद से त्यागपत्र देने के बाद उमा को लगा कि शायद फिर से वापसी करनी आसान होगी।लेकिन,वो सारी इबारतें राजनीति के इतिहास में दर्ज हैं कि,कैसे कुर्सी की तड़प से तमतमाई उमा भारती ने अटल और आडवाणी की साख को चुनौती दे डाली थी।जनशक्ति के माध्यम से नगाड़ा बजाने की कोशिश भी असफल रही। स्व. मदनलाल खुराना के अलावा तब जनशक्ति में और किसी बड़े नेता ने अपनी शक्ति लगाई हो ,याद नहीं आता।धीरे – धीरे राजनीति के अस्ताचल में प्रवेश कर रही उमा श्री भारती के लिए 2014 का समय अनुकूल था।जब एक बार बदले हुए बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारते हुए मोदी के पहले मंत्रिमंडल में गंगा संवर्धन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन,इन पांच सालों में कोई रेखांकित करने वाली उपलब्धि उनके हिस्से में नहीं आई। फिर उन्होंने अगला चुनाव न लडऩे की घोषणा कर दी।और अब बुधवार को फिर से अगला चुनाव लडऩे की मंशा जाहिर कर अस्थिर विचार का परिचय दे रहीं हैं।हालांकि मध्यप्रदेश में मैं जिन तीन नेताओं को जननेता समझता हूं उनमें शिवराज सिंह चौहान,दिग्विजय सिंह के बाद उमा भारती थी हैं जिनके आजीवन समर्थकों की बड़ी संख्या है।लेकिन,पिछले दौर में शराब दुकानों के बाहर पत्थर फेंकती उमा भारती ने जनता की नजरों में भले ही अपनी रॉबिनहुड की छवि गढ़ी हो किंतु नेतृत्व इस घटना से असहज हुआ।मैं ऐसा तो नहीं कहता कि आज भाजपा की राजनीति में उमा भारती अप्रासंगिक हो गई हैं ,क्योंकि योगी आदित्यनाथ के रूप में पार्टी के पास भगवा राष्ट्रवाद का सर्वश्रेष्ठ फॉर्मूला उपलब्ध है।योगी कमोबेश उमा की तुलना में कहीं ज्यादा हिंदुत्व के पोस्टर बनकर उभर चुके हैं।अभी तो लोकसभा चुनाव 2029 में संभावित हैं तब तक क्या परिस्थिति बनती है यह भविष्य के गर्भ में निहित है।एक तपस्वी साध्वी के रूप में उमा भारती निस्संदेह छाप छोड़ती हैं लेकिन एक राजनेता के रूप में उनका कार्यकाल उतार चढ़ाव और अन्तद्र्वन्द से ही जूझता दिखाई दिया है।अब उनके सिपहसालारों की संख्या भी अपेक्षाकृत बहुत सीमित हो गई है और अब शायद बीजेपी को भी उनकी इतनी जरूरत है यह सोचना बेमानी ही है।फिर भी अगला लोकसभा चुनाव झांसी से लडऩे की उमा की घोषणा वैसी ही है ,जैसे कि स्व. अर्जुन सिंह ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को पोस्ट कार्ड पर लिखकर होशंगाबाद से लोकसभा चुनाव लडऩे की मंशा व्यक्त की थी।तब यह कहा गया कि अर्जुन सिंह ने चाचा केसरी पर दबाव बनाने के लिए पोस्ट कार्ड को माध्यम बनाया था।हालांकि अर्जुन सिंह वो चुनाव हार गए थे।लिहाजा ये तो समय समय की बात है।लेकिन उमा श्री भारती की एक बार फिर छटपटाहट बता रही है कि-
“ख्वाबों की तेरी दुनिया हकीक़त से दूर है, ला ‘हासिल ख़्वाहिशों की तमन्ना फिज़़ूल है”