पीछे की खबर (मध्य स्वर्णिम): ऋषिकांत सिंह (रजत) परिहार (मो. 09425002527)
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कहते भी हैं और करते भी हैं कि कानून सभी के लिए समान है, तो वो धरातल पर उतरते हुए दिखाई देनी भी चाहिए। सिवनी लूट कांड ने मध्यप्रदेश पुलिस के देशभक्ति जनसेवा के जज्बे पर जो दाग लगाया है ये कलंक सालों तक धुलने वाला नहीं हैं। मुख्यमंत्री के सख्त निर्देश के बाद कथित 11 आरोपियों पर तो अपहरण और लूट जैसे मामलों में कायमी कर जेल भेज दिया जाना, सख्त कदम तो है लेकिन इसके पहले पुलिस की बेचारगी भी झलकती है। क्यों वर्दी पर दाग लगे? कौन इसके पीछे था? सीएसपी पूजा पांडे किस अधिकारी से परामर्श ले रही थी? जैसे प्रश्न के उत्तर तो अभी मिले ही नहीं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने मकवाना जी आपको फ्री हैंड दे रखा है। यह भी जगजाहिर है कि आप निहायत ही ईमानदार अफसर हैं जो काजल की कोठरी में रहकर भी बेदाग हैं। लेकिन, कहीं-कहीं आपका सद्यवहार ही बाधक बन रहा है। कोई भी पुलिस अधिकारी इतना शक्तिशाली कैसे हो सकता है? स्थानांतरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, ला एंड आर्डर के हिसाब से ट्रांसफर होते आए हैं आगे भी होते रहेंगे। लेकिन, जब इसे चुनौती दी जाए तो क्या यह अनुशासनहीनता की श्रेणी में नहीं आना चाहिए। सिवनी के जिस अति. पुलिस अधीक्षक गुरुदत्त शर्मा की भूमिका को लेकर स्थानीय मीडिया में तरह- तरह की चर्चाएं चल रही हैं उनका इस प्रकरण में कितनी भूमिका है? अति. पुलिस अधीक्षक गुरुदत्त शर्मा का जब स्थानांतरण कर दिया गया तब भी वो शासकीय आवास पर कब्जा क्यों जमाए बैठे हैं? सिवनी जिले से उन्हें इतना मोह क्यों हो गया की सरकार के आदेश के खिलाफ न्यायालय चले गए? क्या कोई भी उच्च अधिकारी का किसी जिले में दो साल तक बने रहने का संवैधानिक हक है? क्या गुरुदत्त शर्मा का यह आचरण सर्विस कोड और कंडक्टर के खिलाफ नहीं है? अब उस कलंक वाली रात के बारे में भी चर्चा और शोध हो जाना चाहिए जब यह कथित रूप से आरोप लग रहे हैं कि मौका वारदात पर उपस्थित पूजा पांडे लगातार किसी अधिकारी से बात कर दिशा-निर्देश ले रही थी। हमारी जानकारी के अनुसार जिस रात की यह घटना है उस रात नव पदस्थ एडिशनल एसपी दीपक मिश्रा लखनवाड़ा थाने में निरीक्षण पर थे। शुरू में तो मामला रफा-दफा करने पर ध्यान दिया गया लेकिन रायता फैलता देख शिकायतकर्ताओं पर नाम नहीं लेने का दबाव भी बनाया गया। इस बीच सोशल मीडिया पर एक ऑडियो क्लिप भी चल रही है जिसमे अति पुलिस अधीक्षक दीपक मिश्रा, सीएसपी पूजा पांडे और आवेदकों के बीच की अस्पष्ट आवाज में बातचीत है। जिसमे आवेदक किसी चौथी काले रंग के गाड़ी की बात कर रहे हैं। इसकी भी जांच होना चाहिए। हालांकि यह भी सही है कि मध्यप्रदेश पुलिस की वर्दी पर लगा यह दाग वज्रपात जैसा है, जिससे उबरने में वक्त लगेगा। लेकिन, ज्यादा वक्त न लग जाए क्योंकि देर से मिला न्याय भी अन्याय के ही बराबर है। फिर असली गुनाहगार तक पहुंचने में पुलिस के हाथ छोटे क्यों पड़ रहे हैं ? क्या पूजा पांडे को बलि का बकरा बनाकर किसी बड़े मगरमच्छ को बचाने की तैयारी तो नहीं हैं? ऐसे सुलगते सवाल कई हैं और अब धधक भी रहे हैं। लिहाजा मकवाना जी आपको स्पष्ट करा देना चाहिए कि ‘गुरुदत्त शर्मा’ इतना शक्तिशाली कैसे हो गए ?
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