शर्म की लिहाफ़ बहुत मोटी है !

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संदर्भ विश्लेषण: सुनील दत्त तिवारी (मो. 9713289999)

सूरज लिहाफ़ ओढ़ के सोया तमाम रात, सर्दी से इक परिंदा दरीचे में मर गया

कमोबेश यही सूरत-ए-हाल बयान करने वाले दृश्य इन दिनों दिखाई दे रहे हैं। जहां शर्म की लिहाफ इतनी मोटी हो चुकी है कि, रत्ती भर भी मानवता का प्रवेश होना नामुमकिन है। पूरे देश में शक्ति की उपासना का पर्व चल रहा है। ऐसे में परनिंदा या आलोचना से बचा जाना चाहिए,ये मान्य परंपरा है। लेकिन,कई बार विषयवस्तु ऐसे होते हैं जिन पर चाहकर भी चुप नहीं बैठा जा सकता। जिस प्रदेश में अतिवर्षा,प्राकृतिक प्रकोप से किसानों की फसलें तबाह हो गई हों, जहां धरती पुत्र खाद की लाइन में खड़े-खड़े दम तोड़ रहे हों वहां एक जनप्रतिनिधि वह भी सत्ताधारी पार्टी के किसान प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष और सांसद, अपना पुष्प अभिषेक कराए तो चुप कैसे बैठा जा सकता है ? अभी सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रहा है,जिसमें नर्मदापुरम संसदीय क्षेत्र से पहली बार के सांसद दर्शन सिंह चौधरी बानापुरा में मंत्रोच्चार के बीच खुद का पुष्प अभिषेक कराते दिख रहे हैं। लोगों की प्रतिक्रियाएं आना लाजिमी थी,आ भी रही हैं और ट्रोल भी हो रहे हैं। दर्शन सिंह केवल सांसद नहीं हैं,वे किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। लिहाजा ,किसानों को यह पुष्प अभिषेक पीड़ा पहुंचा रहा है। अतिवृष्टि, खाद बीज की किल्लत से जूझ रहे अन्नदाताओं को भरोसा था कि ऐसे मौके पर तो चौधरी जी के दर्शन होंगे ही,लेकिन सांसद तो स्वयं का अभिषेक करा रहे ! अच्छा कोई पूछने की कोशिश तो करे कि लोकसभा चुनाव से ही सार्वजनिक जीवन में राजनीति की शुरुआत करने वाले दर्शन सिंह ने ऐसी कौन सी उपलब्धि अर्जित कर ली? जिसकी वजह से पुष्प अभिषेक की अभिलाषा ने कुलांचे मार दिए। क्योंकि, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हों या वर्तमान में डॉ मोहन यादव ने अन्नदाताओं के कष्ट कंटकों को निकालने लिए कई योजनाएं शुरू की और लगातार प्रयासरत भी हैं। डॉ. यादव ने सोयाबीन किसानों के मर्म को समझते हुए भावांतर की योजना लागू की,मूंग सहित अन्य उपज के लिए समर्थन मूल्य दिलवाया।लेकिन,ऐसे पुष्प अभिषेक से परहेज किया। हालांकि सांसद बनने के पूर्व दर्शन सिंह राज्य शिक्षक संघ के संरक्षक भी थे फिर किसान संघ से भी जुड़े। बीजेपी की परंपरागत सीट से उदय प्रताप सिंह के स्थान पर शिवराज सिंह चौहान के कोटे से टिकट मिला और मोदी-मोहन के सैलाब में जीतकर संसद पहुंच गए। बतौर सांसद भी अभी तक कोई रेखांकित कर पाने वाली उपलब्धि चौधरी के खाते में नहीं है। हां, दर्शन सिंह जवाहर नवोदय विद्यालय से पढ़े हैं, शायद पुष्प के पुण्य अभिषेक की संस्कृति उनको जवाहर से ही मिली होगी। अन्यथा तो संघ या भाजपा में स्वसम्मान से परहेज ही किया जाता रहा है। माननीय सांसद दर्शन सिंह जी का खूब सम्मान हो, इसमें किसी और को आपत्ति क्यों होनी चाहिए? लेकिन, जब आप एक कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था के संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हों, जहां का किसान प्राकृतिक आपदा से त्राहिमाम कर रहा हो तो ऐसे मौके पर पुष्प अभिषेक कराना, मतलब अन्नदाता के जले पर नमक मलना ही माना जाएगा। तभी तो राहत इंदौरी लिखते हैं-

न हम-सफर न किसी हम-नशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा। शर्म की लिहाफ़ बहुत मोटी है!