नई दिल्ली (मध्य स्वर्णिम): सुप्रीम कोर्ट ने खुद को संविधान का संरक्षक बताते हुए पूछा कि अगर राज्यपाल जैसे कोई सांविधानिक पदाधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है, तो क्या अदालत चुप बैठ सकती है? शीर्ष कोर्ट ने यह बात राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए उस संदर्भ पर कही, जिसमें पूछा गया था कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति किसी विधेयक को मंजूरी देने में अनिश्चितकाल तक देरी कर सकते हैं और क्या अदालत उनके लिए कोई समयसीमा तय कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में दस दिन तक सुनवाई चली, जिसमें संविधान पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने की। मामला भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से जुड़ा है, जिसमें पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर मंजूरी देने के लिए समयसीमा तय करने का आदेश दे सकता है? सुनवाई के अंतिम दिन जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान के मूल ढांचे के तहत शक्ति के बंटवारे की बात की और कहा कि कोर्ट को राज्यपाल के विवेकाधीन अधिकारों में दखल नहीं देना चाहिए, तो कोर्ट ने उन्हें टोका। सीजेआई ने कहा, चाहे कोई कितना ऊंचा पदा हो, लेकिन अगर लोकतंत्र का कोई एक स्तंभ अपने कर्तव्य को निभाने में विफल रहता है, तो क्या संविधान का संरक्षक (सुप्रीम कोर्ट) चुप बैठा रहेगा? तुषार मेहता ने जवाब में कहा कि केवल न्यायपालिका ही नहीं, कार्यपालिका और विधायिका भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की संरक्षक हैं।
जो लोग जांच करते हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए:
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त नीरज कुमार के खिलाफ दो दशक पुराने मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा कि जो लोग जांच करते हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए। इस मामले में दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ किए जाने और आपराधिक धमकी देने के आरोप हैं।यह मामला 2001 की एक घटना से जुड़ा है, जब नीरज कुमार सीबीआइ में संयुक्त निदेशक थे और उन पर एक मामले में दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 13 मार्च 2019 को अपनी एकल पीठ के साल 2006 के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें नीरज कुमार और तत्कालीन सीबीआइ अधिकारी विनोद पांडे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा- ‘अब समय आ गया है कि जांच करने वालों की भी कभी-कभी जांच की जानी चाहिए, ताकि आम जनता का व्यवस्था में विश्वास बना रहे।’