शहबाज के सामने प्रधानमंत्री मोदी ने सुनाई खरी-खरी

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नई दिल्ली (मध्य स्वर्णिम): एससीओ शिखर सम्मेलन चीन के तियानजिन में संपन्न हुआ। पीएम मोदी और शी चिनफिंग और पीएम मोदी और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकातें महत्त्वपूर्ण रहीं। चीनी राजदूत ने कहा कि एससीओ एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है। शिखर सम्मेलन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सहयोग पर जोर दिया गया। सदस्य देशों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास और उपयोग में सहयोग करने की तत्परता व्यक्त की। भारत, चीन, रूस सहित एससीओ समूह में 10 सदस्य देश, दो पर्यवेक्षक देश और 14 संवाद साझेदारों ने हिस्सा लिया। एससीओ समिट में दो मुलाकातें ऐसी रहीं जिन पर दुनिया की निगाहें टिकी हुई थीं, जिनमें पहली, पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और दूसरी पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की। दोनों ही मुलाकातें सफल रहीं। एससीओ शिखर सम्मेलन को लेकर भारत में चीनी राजदूत, शु फेह होंग ने सोमवार को कहा कि एससीओ शिखर सम्मेलन ने आम सहमति बनाने और विकास की रूपरेखा तैयार करने में मदद की है। उन्होंने कहा, राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस बात पर जोर दिया कि एससीओ एक नए प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बढ़ावा देने और मानवता के साझा भविष्य वाले समुदाय के निर्माण में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है। इस शिखर सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण मिशन है सभी पक्षों के बीच आम सहमति बनाना, सहयोग को गति देना और विकास की रूपरेखा तैयार करना। विश्वास है कि सभी पक्षों के सामूहिक प्रयासों से यह शिखर सम्मेलन पूरी तरह सफल होगा और एससीओ इसमें और भी बड़ी भूमिका निभाएगा।

भारत ने 39 महीने म बचाए 1111 अरब रुपये:
जब रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण किया, तो भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 2त्न से भी कम थी। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के वजह से रूस ने अपने तेल पर भारी छूट देना शुरू किया, जिसका फायदा भारत ने उठाया। मौजूदा समय की बात करें तो मात्रा के हिसाब से भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी एक तिहाई से भी अधिक है। हाल के वर्षो में रूस से क्रूड ऑयल का आयात करके भारत ने 12 अरब डॉलर से भी अधिक की बचत की है।अगर भारत ने रूस से कच्चा तेल न खरीदा होता तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल आ सकती थी। अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाती तो भारत को उतना ही कच्चा तेल आयात करने के लिए वर्तमान से काफी ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते।